उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद से उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री बदलने का खेल लगातार चलता रहा है और आलम यह है कि राज्य निर्माण के मात्र 21सालों में ही 11 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी बदली गई है।वहीं अगर इन 21 सालों में मुख्यमंत्रियों द्वारा की गई घोषणाओं और कार्यो की बात करेंगे तो पाएंगे कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री घोषणाएं तो कर देते हैं परंतु उन घोषणाओं पर काम करना वो भूल जाते हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में यह बड़ा खुलासा हुआ है।
उत्तराखंड में बीते दस वर्षों में अब तक कुल 9245 घोषणाएं की गई और इनमें से पूरी केवल 18 घोषणाएं ही हो पाई है। कई घोषणाएं शासन स्तर पर ही लंबित है।कई तो शुरू भी नही हुई लेकिन कागजी तौर पर शुरू हो चुकी है।
हल्द्वानी निवासी हेमंत गोनिया ने आरटीआई के तहत अब तक हुई कुल घोषणाओं का ब्यौरा मांगा था जिसमे खुलासा हुआ कि बीते दस सालों में 9245 घोषणाओं में से मात्र 18 घोषणाएं ही पूरी हो पाई हैं,वहीं 5073 घोषणाओं के शासनादेश जारी हुए हैं।कुल घोषणाओं में से 2817 घोषणाएं शासन स्तर पर लंबित है जबकि 1337 घोषणाएं धरातल पर अधूरी है। इन घोषणाओं में सबसे ज्यादा लोक निर्माण विभाग से सम्बंधित है। लोक निर्माण विभाग से जुड़ी 2869 घोषणाओं में से मात्र 4 ही पूरी हो पाई है।
आइये अब एक नज़र डालते है इन दस सालों में कौन कौन मुख्यमंत्री उत्तराखंड में रहे जिन्होंने घोषणाएं तो की लेकिन उन्हें पूरा करने में फेल साबित हुए।
पिछले दस सालो में उत्तराखंड में सात मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठे,इनमें डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, भुवन चन्द्र खंडूरी,विजय बहुगुणा, हरीश रावत,त्रिवेंद्र सिंह रावत,तीरथ सिंह रावत,पुष्कर सिंह धामी शामिल है।
आगामी विधानसभा चुनाव में इस बार फिर बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने है,लेकिन सवाल वही खड़ा है इन दोनों दलों ने उत्तराखंड का कितना विकास किया? घोषणाएं की गई तो उन्हें पूरा क्यो नही किया गया? घोषणाओं के लिए बजट भी पारित किया गया,फिर घोषणाएं अधूरी क्यों?