उत्तराखण्ड। एक ओर देश और प्रदेश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां अपने चरम पर हैं। हालांकि चुनाव को शांतिपूर्वक एवं सुरक्षा पूर्वक कराए जाने के लिए चुनाव आयोग ने स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर कुछ कड़े फैसले लिए हैं। चुनाव आयोग द्वारा कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए इस बार राजनीतिक दलों को विभिन्न पाबंदियों में बांध दिया है और कड़े नियम बनाकर सभी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को इन नियमों का पालन करने के निर्देश दिए हैं। परंतु राष्ट्रीय दल इन नियमों का मखौल उड़ाते हुए दिख रहे हैं। लगातार इस तरह की खबरें सामने आ रही हैं कि राष्ट्रीय दलों के नेता जगह-जगह पर आचार संहिता एवं कोरोना के नियमो का उल्लंघन कर रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा तय दिशानिर्देशों के अनुसार इन दिनों डोर टू डोर प्रचार में मात्र 10 लोगों के जाने की अनुमति है वही इनडोर सभा में अधिकतम 300 और जगह के क्षमता के 50% ही लोगों की अनुमति दी गई है। परंतु नेताओं के लिए जैसे चुनाव आयोग कोई मतलब ही नहीं रखता है और चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुए नेतागण डोर टू डोर कैंपेन में बड़ी भीड़ लेकर जा रहे हैं,वही कहीं पर इनडोर प्रचार की अनुमति लेकर खुले में सभाएं कर दी जा रही हैं।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या भारत का चुनाव आयोग इतना कमजोर और लाचार है कि वह प्रत्याशियों से निर्देशों का पालन भी नहीं करवा पा रहा है।हालांकि जिम्मेदार अधिकारी आचार संहिता उल्लंघन के मामले में ऐसे नेताओं को लगातार नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांग रहे हैं,परंतु अब तक किसी भी प्रत्याशी पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है। वैसे भी अगर भारत के चुनावी इतिहास को देखा जाए तो भारत में हर चुनाव में बड़ी संख्या में आचार संहिता के उल्लंघन के मामले दर्ज किए जाते हैं,परंतु आज तक एक भी मामले में ऐसी कार्यवाही नहीं हो पाई है जिससे प्रत्याशी के मन में आचार संहिता के उल्लंघन पर होने वाली कार्यवाही का डर पैदा हो।