उत्तर प्रदेश राज्य में विकास की रोशनी पहाड़ी क्षेत्रों तक आसानी से न पहुंचने,पहाड़ी क्षेत्रों के पिछडेपन को दूर करने व अन्य कई बुनियादी सुविधाओं के लिए उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों को अलग कर पहाड़ी राज्य की स्थापना की मांग की गई। हजारों आंदोलनकारियों के प्रयास के बाद देश के 29वे राज्य के रूप मे उत्तरांचल राज्य निर्माण हुआ,परन्तु राज्य निर्माण के जो सपने आंदोलनकारियों व जनता ने देखे थे वे आज भी अधूरे हैं।
राज्य निर्माण के 21 वर्षों में राज्य का विकास चाहे हुआ हो या न हुआ हो पर नेताओ ने अपना विकास खूब किया है,यही कारण है कि राज्य निर्माण के 21 वर्षों में राज्य ने 11 मुख्यमंत्री देख लिए हैं,और दर्जाधारियो कि फौज भी राज्य ने देखी है।आय के कम संसाधन होने के कारण राज्य में विकास कार्यो में दिक्कत तो होती है और नेतागण इस पर बोझ बढ़ाते रहते हैं।अब उत्तराखण्ड के स्वघोषित मसीहा हरीश रावत कम संसाधन वाले राज्य पर बोझ बढ़ाने का एक और फार्मूला लेकर आ गए हैं।हरीश रावत का कहना है कि उत्तराखण्ड राज्य में राजनीतिक स्थिरता और विकास की गति बढ़ाने के लिए 21 सदस्यीय विधानपरिषद का गठन होना चाहिए।हरीश रावत का कहना है कि उत्तराखण्ड राज्य में केवल 12 मंत्री बनाये जा सकते है और उन्हें सभी विभाग देखने होते है अर्थात अन्य राज्यो की तुलना में उत्तराखण्ड के मंत्रियों को तुलनात्मक रूप से अधिक विभाग देखने पड़ते है जिससे विकास कार्यो की गति धीमी होती है।
अब विचार करने वाली बात ये है कि क्या विधानपरिषद का गठन करने से विकास कार्य तेज होंगे या फिर खुद को कॉंग्रेस में ही कमजोर पड़ता देख हरीश रावत अपने ऐसे चहेतों, जो विधायक नही बन पा रहे हैं को विधानपरिषद में एडजस्ट कर उन्हें खुश करना चाहते हैं।
बड़ा सवाल ये भी है कि उत्तराखण्ड में जो राजनीतिक अस्थिरता है उसके जिम्मेदार उत्तराखण्ड के अति महत्वाकांक्षी नेता है तो हरीश रावत इसे दूर करने के लिए ऐसे फॉर्मूले क्यो ला रहे हैं जिससे राज्य और जनता पर बोझ बढ़े।वैसे यह पहली बार नही है जब हरीश रावत उत्तराखण्ड में विधानपरिषद गठन की बात कर रहे हैं इससे पहले भी वे कई बार विधानपरिषद गठन की मांग करते आये हैं।