समलैंगिक विवाह पर बीएसआई ने जताई चिंता, आने वाली पीढ़ी के लिए हानिकारक साबित होने की जताई आशंका

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दिल्लीः देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. यह सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ कर रही है. सुनवाई को लेकर अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BSI) ने चिंता जताई है और एक प्रस्ताव पास किया है. यह प्रस्ताव बीसीआई ने सभी राज्य बार संघों के साथ बैठक में विचार-विमर्श के बाद पारित किया है. बीसीआई ने कहा है कि इस मामले पर कोई भी फैसला आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है.

बीसीआई ने इस मामले पर आज सभी स्टेट बार काउंसिल की संयुक्त बैठक की. संयुक्त बैठक में समान लिंग विवाह की अवधारणा के गंभीर नुकसान और देश के बार की राय से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराना समेत अन्य मुद्दे शामिल थे. विचार विमर्श के बाद ही समान लिंग विवाह से संबंधित मुद्दे पर संयुक्त बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया. प्रस्ताव में कहा गया कि सुप्रियो @ सुप्रिया चक्रवर्ती बनाम भारत संघ (रिट याचिका (सिविल) संख्या 1011/2022) शीर्षक वाले मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के समक्ष चल रही कार्यवाही और अन्य संबंधित मामले बहुत चिंता का विषय हैं.

प्रस्ताव में कहा गया है कि बार के लिए गंभीर चिंता का विषय पारंपरिक और पुराने विवाह कानूनों को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती देना है. क्योंकि हमारे कानून समान-लिंग वाले जोड़ों के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते, जबकि भारत दुनिया के सबसे सामाजिक-धार्मिक रूप से विविध देशों में से एक है, जिसमें विश्वासों पर सबकुछ आधारित है. इसलिए कोई भी मामला जो मौलिक सामाजिक संरचना के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना रखता है, वह हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों पर दूरगामी प्रभाव डालता है. उसे आवश्यक रूप से विधायी प्रक्रिया (संसद की ओर से पारित) के माध्यम से ही आना चाहिए.

बैठक में सर्वसम्मति से राय व्यक्त की गई कि ऐसे संवेदनशील मामले में सु्प्रीम कोर्टा का कोई भी फैसला हमारे देश की आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह मुद्दा अत्यधिक संवेदनशील है. सामाजिक-धार्मिक समूहों सहित समाज के विभिन्न वर्गों की ओर से टिप्पणी की गई है और आलोचना की गई है, क्योंकि यह एक सामाजिक-प्रयोग है, जिसे कुछ चुनिंदा लोगों की ओर से गढ़ा गया है.

प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि हमारे संविधान के तहत कानून बनाने की जिम्मेदारी विधायिका को सौंपी गई है. निश्चित रूप से विधायिका की ओर से बनाए गए कानून वास्तव में लोकतांत्रिक होते हैं, क्योंकि वह पूरी तरह से परामर्श प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद बनाए जाते हैं और समाज के सभी वर्गों के विचारों को प्रतिबिंबित करते हैं. विधायिका ही जनता के प्रति जवाबदेह है.


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