नई दिल्ली: दिल्ली के जंतर-मंतर में देश के पदकवीर पहलवानों का धरना जारी है। पदक विजेता विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक जैसे पहलवान इस प्रदर्शन की अगुआई कर रहे हैं। पहलवानों ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। उनकी शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है। इसके बावजूद भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह ने न तो अपने पद से इस्तीफा दिया है, न ही पार्टी की ओर से अब तक उन्हें ऐसा कुछ करने को कहा गया है। ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर बृजभूषण सिंह का सियासी दमखम कितना है?
पहले जानते हैं आखिर मामला क्या है?
18 जनवरी 2023 के दिन विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया समेत करीब 30 पहलवान भारतीय कुश्ती संघ के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए। पहलवानों ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह पर यौन शोषण सहित कई गंभीर आरोप लगाए।
खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों के साथ कई दौर की बात की। 21 जनवरी को बृजभूषण सिंह के खिलाफ लगे आरोपों पर जांच के लिए समिति का गठन किया गया और उन्हें कुश्ती संघ के कामकाज से दूर रहने के लिए कहा गया। पहलवानों ने चार दिन प्रदर्शन करने के बाद धरना खत्म कर दिया।
पांच अप्रैल को समिति ने अपनी रिपोर्ट खेल मंत्रालय को सौंप दी। हालांकि, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। कई मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि बृजभूषण पर आरोप लगाने वाली महिला पहलवान सबूत नहीं दे पाईं हैं। वह निर्दोष हैं, लेकिन कुश्ती संघ के अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेंगे।
उन्हें संघ में कोई और जिम्मेदारी मिल सकती है। भारतीय पहलवान लगभग तीन महीने बाद 23 अप्रैल को फिर जंतर-मंतर में धरने पर बैठ गए। पहलवानों ने सुप्रीम कोर्ट में भी बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर को लेकर शिकायत की और 28 अप्रैल को इस मामले पर सुनवाई हुई। यहां कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने पुलिस को शिकायत करने वाली पहलवानों की सुरक्षा तय करने का भी निर्देश दिया। इसके बाद पहलवानों ने कहा कि बृजभूषण सिंह के गिरफ्तार होने तक धरना जारी रहेगा। वहीं, बृजभूषण सिंह ने खुद को निर्दोष बताया और संकेत दिया कि पूरी ताकत लगाकर खुद को निर्दोष साबित करेंगे।
कौन हैं बृजभूषण सिंह?
बृजभूषण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हुआ था। उन्होंने अवध विश्विद्यालय से कानून की पढ़ाई की। छात्र जीवन में उन्होंने राजनीति में आने की तैयारी कर ली थी। इस दौरान उनका जुड़ाव संघ से हुआ। 90 के दशक में उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। बृजभूषण की सक्रियता के कारण उन्हें भाजपा में शामिल किया गया।
गोंडा से लड़ा पहला चुनाव
बृजभूषण शरण सिंह छह बार के लोकसभा सांसद हैं। वह वर्तमान में बहराइच जिले में आने वाली कैसरगंज लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बृजभूषण पांच बार भाजपा से और एक बार समाजवादी पार्टी से सांसद बने। 1991 में पहली बार वह भाजपा की टिकट पर उत्तर प्रदेश के गोंडा सीट से चुने गए। 1999 में उसी सीट से लोकसभा सांसद बने। 2004 में बलरामपुर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते।
क्रॉस वोटिंग करने पर भाजपा ने किया था निष्कासित
बृजभूषण ने जुलाई 2008 में लोकसभा के विश्वास मत के दौरान संसद में क्रॉस वोटिंग की। इसके बाद भाजपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया। पार्टी से निकाले जाने के बाद बृजभूषण समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। 2009 में, बृजभूषण सपा की टिकट पर कैसरगंज सीट से लोकसभा सांसद बने।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बृजभूषण शरण सिंह ने एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया। वर्तमान में बृजभूषण भाजपा से 17वीं लोकसभा सांसद हैं। इसके अलावा वह रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (WFI) के अध्यक्ष हैं।
बृजभूषण का कितना है सियासी प्रभाव?
66 वर्षीय भाजपा नेता भले ही कैसरगंज सीट से लोकसभा सांसद हैं लेकिन उनका प्रभाव आसपास की गोंडा, कैसरगंज, बलरामपुर समेत कम से कम पांच लोकसभा सीटों पर माना जाता है। इसके अलावा बृजभूषण की पत्नी केतकी देवी सिंह गोंडा जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। केतकी गोंडा सीट से लोकसभा सांसद भी रह चुकी हैं। बृजभूषण के बेटे प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर विधानसभा सीट से विधायक हैं।
कहा जाता है कि भाजपा नेता का गोंडा, बहराइच, डुमरियागंज, कैसरगंज और श्रावस्ती जिलों में टिकट बंटवारे में दबदबा रहता है। स्थानीय नेता तो यहां तक दावा करते हैं कि उन्हें जीतने के लिए किसी के मदद की जरूरत नहीं, बल्कि हर पार्टी उन्हें खुद ही टिकट देना चाहती है।
क्या जातिगत प्रभाव भी बृजभूषण के साथ है?
बृजभूषण सिंह के सियासी प्रभुत्व की वजह उनके साथ रहने वाला जातिगत समीकरण भी है। वह क्षत्रिय समाज से आते हैं। कैसरगंज लोकसभा सीट की बात करें तो यहां समाज के करीब 20 फीसदी वोटर हैं जिनके ज्यादातर वोट बृजभूषण के लिए पड़ते रहे हैं। इसके अलावा गोंडा, बहराइच, डुमरियागंज, कैसरगंज और श्रावस्ती जिलों में भी इस समाज का मजबूत वोटबैंक है। जानकारों का कहना है कि बृजभूषण सिंह पर भाजपा की कोई भी कार्रवाई इसके लिए एक बड़े वोट बैंक को खोने का खतरा साबित हो सकती है।