उत्तराखंड: देवभूमि के जाड़ समुदाय गांव में मनाई गई दीपावली! देर रात तक खूब थिरके लोग

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उत्तरकाशी जनपद के जाड़ समुदाय के चार दिवसीय लोसर पर्व का आगाज हो गया है। जाड़ समुदाय के ग्रामीण चार दिन एक साथ चार त्योहार मनाते हैं। जिसमें पहले दिन दीपावली और अंतिम दिन आटे की होली के साथ लोसर पर्व का समापन होता है। पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का शुभारंभ होता है। जाड़ समुदाय के लोग लोसर पर्व के साथ नए साल का स्वागत करते हैं। जनपद में भारत-चीन सीमा पर स्थित नेलांग एवं जाढ़ूंग गांव से विस्थापित होकर हर्षिल, बगोरी एवं डुंडा में बसे जाड़ भोटिया समुदाय के लोग पर्व को विशेष उत्साह एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। पहले दिन चीड़ के छिलकों से बनी मशालें जलाकर दीपावली मनाई।

जनपद के जाड़ समुदाय के ग्रामीण सर्दियों में बगोरी गांव से वीरपुर डुंडा आ जाते हैं। जहां पर फरवरी माह में लोसर त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व का आगाज शुक्रवार रात दीपावली के साथ हो गया है। ग्रामीण लोसर पर्व के पहले दिन डुंडा बाजार में एकत्रित हुए। जहां पर ग्रामीणों ने मशाल जलाकर अपने आराध्य देवता की पूजा के साथ ढोल दमाऊ की थाप पर स्थानीय वेशभूषा में लोक नृत्य किया। बगोरी के पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा ने बताया कि इस लोसर पर्व में हिन्दू और बौद्ध धर्म का मिश्रण देखने को मिलता है जहां पहले दीपावली होती है। वहीं दूसरे दिन बौद्ध पंचांग के अनुसार नववर्ष का शुभारंभ होता है।
इस मौके पर जाड़ समुदाय से जुड़े हिन्दू समुदाय के लोग अपने घरों और पूजा स्थलों में श्रीराम जी के झंडे लगाते हैं। वहीं खंपा जाति के लोग बौद्ध मंदिरों में बुद्ध के श्लोकों से लिखे झंडे लगाते हैं। तीसरे दिन जाड़ समुदाय की आराध्य देवी रिंगाली देवी के मंदिर में हरियाली काटकर दशहरा मनाते हैं। इस अवसर पर जाड़ समुदाय की महिलाएं अपनी स्थानीय वेशभूषा में लोकनृत्य करती हैं। वहीं समुदाय के लोग अपने मेहमानों को हरियाली देकर स्वागत करते हैं। लोसर पर्व के अंतिम दिन आटे की होली खेली जाती है। होली के बाद सभी अपने देवी-देवताओं से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।


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