महान लेखक फोटोग्राफर और शिकारी रहे जिम कॉर्बेट के जन्म दिवस पर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई जिम कार्बेट का मसूरी से गहरा नाता रहा है उनके पिता विलियम कॉर्बेट मसूरी के डाकघर में पोस्ट मास्टर के तौर में कार्यरत रहे और मसूरी में वे लगभग 20 वर्षों तक रहे जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1975 को नैनीताल में हुआ और उनके कई रिश्तेदार मसूरी में रहते थे जिस कारण समय समय पर वे मसूरी आते रहे
जिम कॉर्बेट महान शिकारी थे अक्सर ग्रामीणों द्वारा आदमखोर जानवरों से निजात पाने के लिए उन्हें बुलाते थे लेकिन जानवरों से उन्हें बहुत प्रेम था और अक्सर वे जानवरों को बचाने का प्रयास करते थे
जिम कॉर्बेट को श्रद्धांजलि देते हुए इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि जिम कॉर्बेट मसूरी के लाल टिब्बा क्षेत्र में उनके पिता निवास करते थे इस कारण मसूरी से उनका गहरा नाता रहा और अक्सर वे मसूरी आते जाते रहे
कुमाऊँ और गढ़वाल में जब कोई आदमखोर जानवर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था जिम कार्बेट वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर और आदमखोर जानवर को मारकर ही लौटते थे उनकी ‘माई इण्डिया’ पुस्तक बहुत चर्चित है
उत्तराखंड के गढ़वाल जिले में अनेक आदमखोर बाघों को मारा था जिनमें रुद्रप्रयाग का आदमखोर तेंदुआ भी शामिल था चम्पावत में 436 लोगों का शिकार करने वाली आदमखोर बाघिन से भी जिम कार्बेट ने ही लोगों को छुटकारा दिलाया था मगर बाद में उनके विचार पलटने से और बाघों की घटती संख्या देखकर उन्होंने सिर्फ छाया चित्रकारीता ही अपनाई।
जिम कॉर्बेट महान शिकारी थे अक्सर ग्रामीणों द्वारा आदमखोर जानवरों से निजात पाने के लिए उन्हें बुलाते थे लेकिन जानवरों से उन्हें बहुत प्रेम था और अक्सर वे जानवरों को बचाने का प्रयास करते थे
जिम कॉर्बेट को श्रद्धांजलि देते हुए इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि जिम कॉर्बेट मसूरी के लाल टिब्बा क्षेत्र में उनके पिता निवास करते थे इस कारण मसूरी से उनका गहरा नाता रहा और अक्सर वे मसूरी आते जाते रहे
कुमाऊँ और गढ़वाल में जब कोई आदमखोर जानवर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था जिम कार्बेट वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर और आदमखोर जानवर को मारकर ही लौटते थे उनकी ‘माई इण्डिया’ पुस्तक बहुत चर्चित है
उत्तराखंड के गढ़वाल जिले में अनेक आदमखोर बाघों को मारा था जिनमें रुद्रप्रयाग का आदमखोर तेंदुआ भी शामिल था चम्पावत में 436 लोगों का शिकार करने वाली आदमखोर बाघिन से भी जिम कार्बेट ने ही लोगों को छुटकारा दिलाया था मगर बाद में उनके विचार पलटने से और बाघों की घटती संख्या देखकर उन्होंने सिर्फ छाया चित्रकारीता ही अपनाई।